लालगढ़ में भी
हो रहे हैं चुनाव
बुलेट और बैलेट के बीच
यो तो हो रही है जंग
लेकिन यह बैलेट भी दिया जा रहा है
बुलेट के बल पर ही
अभी बुलेट है
किसी और के हाथ
चुनाव तक
हमें कहा गया है
नहीं करनी है कोई क्रांति
भूमिगत हो जाना है
नहीं उठाने हैं
कोई जन मुद्दे
और इस बात के लिए
बिका हूँ मैं
कई कई बार
बैलेट को जीतना जो है
पिछली बार
वादा किया था
मुझे भी लाल झंडे से निकल कर
श्वेत धवल वस्त्र पहनने का
लेकिन कहाँ हो पाया सफल मैं
समझ नहीं पाया कि
कल तक मेरे साथ
गोली चलाने की ट्रेनिंग देने वाले मेरे मित्र ने
राजधानी में कैसे बना ली है पैठ
बदल गया है उसका झंडा
उसके झंडे का रंग
उसका नारा
इस बीच
खबर आयी है कि
ओसामा मारा गया
मैं भी
मार गिरा दिया जाऊंगा
बैलेट की जीत के बाद
और मेरे लाल गढ़ में
होता रहा है ऐसा पहले से भी
Bhai Palash,
ReplyDeleteKafi dino ke bad apne koi post dali hai.Padh kar achha laga.
Saurabh.
very good stire
ReplyDeletebehtareeen..
ReplyDeleteपलाश जी
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपकी कोई कविता आयी हैं. इस कविता में लाल झंडे और ओसामा का विम्ब समन्वय मुझे तो अच्छा लगा.. . कविता बढ़िया बनी है.. निरंतरता बनाये रखिये...
ये एक विसियस सर्किल है। लाल-सफ़ेद-लाल ....ह्लाल...!
ReplyDeleteपलाश जी
ReplyDeleteसार्थक और भावप्रवण रचना।
प्रिय पलाश,स्नेह.
ReplyDelete"ओसामा मारा गया" में आपने इंसानी मतलबपरस्ती और पाखंड का जो चित्रण किया है उससे एक बार फिर यही साबित हुआ है कि मोहरा बनकर जियो तो ठीक नहीं तो बलि का बकरा बना दिया जाएगा.दूसरा पक्ष भी अवसरवादी समाज के चेहरे से नकाब हटता है.ओसामा एक प्रतीक है,एक प्रतिबिम्ब है जिसके सहारे सत्ता और समाज के दोहरे चरित्र को बाहर लाया गया है.आज ऐसा समूचे विश्व में ही हो रहा है. हर जगह एक लालगढ़ को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर किया जा रहा है. पिछली रचनाओं में छिपी आग की आंच इस रचना में भी महसूसी जा सकती है. बहुत सुन्दर,बहुत मार्मिक. आपकी शैली में इसे पूरी वस्तुनिष्ठता प्राप्त होती है.
कल तक मेरे साथ
ReplyDeleteगोली चलाने की ट्रेनिंग देने वाले मेरे मित्र ने
राजधानी में कैसे बना ली है पैठ
बदल गया है उसका झंडा
उसके झंडे का रंग
उसका नारा
......
इसे राजनीति कहते हैं.
राजनीति की चाल पर मोहरों का यही अंजाम होता है !
ReplyDeleteमार्मिक !
इस बीच
ReplyDeleteखबर आयी है कि
ओसामा मारा गया
मैं भी
मार गिरा दिया जाऊंगा
बैलेट की जीत के बाद
और मेरे लाल गढ़ में
होता रहा है ऐसा पहले से भी
very nice
बहुत खूब ... भारत में होने वाली सामाजिक क्रांतियाँ ऐसी ही होती हैं ...झंडे बदल जाते हैं स्वार्थ के तराजू पर ... बहुत प्रभावी रचना ...
ReplyDeletenamaskaar !
ReplyDeletebehad sunder abhivyakti .
saadar .
gambheer rachna
ReplyDeleteगोली चलाने की ट्रेनिंग देने वाले मेरे मित्र ने
ReplyDeleteराजधानी में कैसे बना ली है पैठ
बदल गया है उसका झंडा
उसके झंडे का रंग
उसका नारा
bahut sahi sandesh deti rachna,...
kaash dahashat gard dharm aur marm ke sath yah sab bhi samajh paate .....