Friday, October 29, 2010

झरिया

सुना होगा
मुहावरा आपने
आग से खेलना
लेकिन
हम झारियावाले
आग जी रहे हैं
पीढ़ियों से

आग ओढना
बिछौना आग
आग पर चलना
आग से खेलना
हमारा शौक नहीं है
मजबूरी है
जो अफसर, सरकार, मंत्री के
बदलने के साथ
नहीं बदली
बढ़ती ही गई आग
पेट में
आँखों में
ह्रदय में
और कोयले में

झरिया
जहाँ पीपल के नीचे के हनुमान जी की मंदिर में
कुस्ती लड़ते थे दद्दा
सुना है अंग्रेजो के भी पटक दिया करते थे
जहाँ ठेहुनिया दे के चलना सीखे थे
बाबूजी हमारे
और हम एक धौरा से दुसरे धौरा
साइकिल हांकते रहते थे दिन भर
जिसको हमारे पसीने की गंध का भी पता है
अब नहीं रहेगा
ध्वस्त कर दिया जायेगा झरिया
और झरिया में पलने वाले सपने

झरिया
एक शहर नहीं है
देशवासियों
एक घर है
जो जल रहा है
जो टूट रहा है
बिखर रहा है
विस्थापित  हो रहा है

Thursday, October 28, 2010

काला पत्थर

वह अब भी 
कमर पर बांधता है 
बैटरी
और माथे पर लैम्प 
धरती के सीने को चीर
जाता है ६०० फुट नीचे रोज
जहाँ रात और दिन में
नहीं होता फर्क

उसकी पत्नी 
बारह घंटे 
आज भी
नहीं हंसती
साँसे नहीं लेतीं
उसके लौट आने तक
बच्चों की आँखें 
सूनी  रहती हैं उस दौरान 
और टिकी रहती है
दरवाजे की  सांकल पर

उसके नथुने में
भरा होता गर्द कोयले का
काला स्याह 
थोडा होता है बारूद
जिससे ढीली की जाती है
धरती की कसावट 
निकालने को कोयला

सुना है
दिन फिरने वाले  है
बम्बई में कुछ रिकार्ड टूटे हैं
उनकी कंपनी द्वारा 
बहुत धन जुटाया गया है
देश विदेश से 
लेकिन
सूरज कहाँ निकलता है
कोयले के धुंए के बादलों की ओट से 
सूचकांक के बढ़ने से 
नहीं होती कोई हलचल 
इस तरफ
यहाँ तो रोज ही चीरना है
धरती की छाती

इनकी सूनी आँखों को 
सुना जा सकता है बोलते 
'ब्लैक डायमंड तो बस काला पत्थर है हमारे लिए'