Tuesday, November 9, 2010

केंदुआ बाज़ार

(धनबाद मुख्यालय से लगभग २० किलो मीटर पश्चिम में बोकारो के रास्ते में एक  छोटा सा क़स्बा हुआ करता था केंदुआ. रविवार को यहाँ साप्तहिक बाज़ार  लगा करता था. जो कि लाखों कोयला मजदूरों के लिए साप्ताहिक मनोरंजन और जरुरत की चीज़ों के लिए एक मात्र स्थान था. समय के साथ नहीं चल पाया केंदुआ बाज़ार और अब नहीं है. बाज़ार का विस्थापन मजदूरों के विस्थापन के साथ गहराई के साथ जुड़ा है. केंदुआ बाज़ार को समर्पित यह कविता. )


केंदुआ बाज़ार
अब नहीं लगेगा
जब लिया गया था
यह फैसला
कोयला भवन में
फैसले का प्रारूप
किया गया था तैयार
राजधानी में
कारपोरेट दफ्तर में
कुछ  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय
कुछ राजनैतिक  और गैर राजनैतिक  दवाब में

तैयार की गई थी
एक रणनीति
मजदूरों से दूर रखने को
उनकी जरूरतें
दूभर करने को
उनका जीवन
केंदुआ बाज़ार
जो जीवन रेखा थी
काट दी गई

केंदुआ बाज़ार
जो धड़कता था
कोयला मजदूरों के ह्रदय में
बंद कर दिया गया
इसके साथ ही
छिन गए रोजगार
हजारों हाथों से
निर्भर हो गए मजदूरों के चूल्हे
बड़ी चमकीली दुकानों पर
और बदल गयी
अर्थव्यवस्था
घर की
जेब की
केंदुआ बाजार के बंद होते ही

जब बिलख रहा था
केंदुआ बाज़ार
जश्न मना रहे थे
अफसर
नेता
ट्रेड यूनियन
और व्यापारी वर्ग

देश में कई और
केंदुआ बाज़ार
अभी  होंगे बंद
मनेगा  जश्न
आत्म-निर्भरता बदलेगी
निर्भरता में

सुना हैं लोकतंत्र में
ऐसे उत्सव अभी जारी रहेंगे .

6 comments:

  1. देश में कई और
    केंदुआ बाज़ार
    अभी होंगे बंद
    मनेगा जश्न
    आत्म-निर्भरता बदलेगी
    निर्भरता में

    सुना हैं लोकतंत्र में
    ऐसे उत्सव अभी जारी रहेंगे .
    बहुत अच्छी लगी रचना। धन्यवाद।

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  2. नहीं भाई बात तो है पर बनी नहीं। असली बात उभर नहीं पाई।

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  3. जब बिलख रहा था
    केंदुआ बाज़ार
    जश्न मना रहे थे
    अफसर
    नेता
    ट्रेड यूनियन
    और व्यापारी वर्ग

    ऐसे ही न जाने कितने बाज़ार धराशाही हिंगे ...बहुत अच्छी रचना ..

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  4. देश में कई और
    केंदुआ बाज़ार
    अभी होंगे बंद
    मनेगा जश्न
    आत्म-निर्भरता बदलेगी
    निर्भरता में

    सुना हैं लोकतंत्र में
    ऐसे उत्सव अभी जारी रहेंगे .

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    bahut sundar abhivyakti !

    .

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  5. प्रिय पलाश ,
    केंदुआ बाजार के माध्यम से बाजार संस्कृति के उभार और उसकी परिणामी परिणति का अद्भुत चित्रण है आपकी रचना. विस्थापन का दंश झेलना ही मजदूरों और मजबूरों की नियति है.सुना था जिसका कोई नहीं होता,उसका खुदा होता है.होता होगा पर दिखाई नहीं देता . यथार्थ का बेहतरीन चित्रण.

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  6. ये ही होता आया है येही होता रहेगा...केन्दुआ बाज़ार बसते रहेंगे उजड़ते रहेंगे...

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