(उलगुलान भगवान् बिरसा द्वारा अंग्रेजो के विरुद्ध चलाया गया विरोध था. जिसके परिणाम स्वरुप जनवरी १९०० में भगवान् बिरसा को अंग्रेजो ने धोखे से गिरफ्तार कर लिया था और जेल में उनकी हत्या कर दी गई थी . अंग्रेजो ने कोलरा को उनकी मृत्यु का कारण बताया.. झारखण्ड में आज फिर से परिस्थिति विषम है. एक और उलगुलान की जरुरत है. )
सिंहभूम
सिंहभूम
मानभूम
पलामू
ये सब नहीं है
मात्र स्थानों के नाम
प्रतीक हैं
जहाँ से चिंगारी चली थी
बचाने को जंगल/जन-अस्मिता
पलाश के दहकते फूल
बरसे थे अंगारे बन
आह्वान पर
बाबा बिरसा के
जब हुआ था
उलगुलान
क्रांति-बीज
बोया गया था
पुनः हो रहे हैं
वैसे ही समझौते
फिर से विस्थापित हैं
बिरसा की संताने
तैयारी है युद्ध की जंगलों के खिलाफ
धरती की कोख को गिरवी रखने के लिए
पलाश के फूल
कर रहे हैं एक और आह्वान
हो एक और उलगुलान
इस बार अपनों के बीच ही सही
अपनों के विरुद्ध ही सही
उलगुलान
झारखण्ड को संकेत बनाकर आपने जो बात कही वह आज पूरे राष्ट्र की पुकार है!! उलगुलान, विप्लव, क्रांति, इंक़िलाब..किसी भी नाम से पुकारें..
ReplyDeleteसार्थक एवं सामयिक आलेख के लिए बधाई।
ReplyDeletejab apno ke julma had par kar jate hai to vidhroh to hoga hi......par bahut dukhad hai ye sthiti....
ReplyDeleteबेहतर...
ReplyDeleteसरोकारी कविता...
पलाश सचमुच आपके राज्य में ही नहीं बल्कि देश में एक और उलगुलान की जरुरत है आज..
ReplyDelete"ये सब नहीं है
ReplyDeleteमात्र स्थानों के नाम
प्रतीक हैं
जहाँ से चिंगारी चली थी
बचाने को जंगल/जन-अस्मिता"
प्रिय पलाश,
एक सामयिक विषय को अपनी सोच से सारगर्भित बनाने और उसके अर्थ को एक नया आयाम देने के लिए धन्यवाद.आपकी संवेदनशीलता का तो पहले से ही कायल हूँ.आज आपने प्रतीकों और बिम्बों का सहज उपयोग करके शिल्प पर अपनी पकड़ का भी लोहा मनवा लिया."पलाश के दहकते फूल बरसे थे अंगारे बन" और आज जो स्थितियां हैं उसमें उलगुलान की पुनरावृति बार-बार संभव है.यदि समय रहते इसका निदान नहीं ढूंढ़ लिया गया .बहुत अच्छी और संवेदनापूर्ण रचना के लिए बधाई.
Dr. Mukesh Gautam ne email se kaha:
ReplyDelete"PRIYA PALASH JI PRANAM,' ULGULAN' KAVITA BAHUT HI ACHCHI HAI . MUJHE BAHUT KHUSHI HUI KI RACHANAKARO KA DHAYAN ISS TARAF JA RAHA HAI. MAI PARYAVARAN PAR 138 LAGHU KAVITAO KI PUSTAK LIKHI THI 'VRIKSHO KE HAQ ME' . ISS CHARCHIT PUSTAK KA ANYA BHASHAO ME ANUWAD BHI HUWA HAI.MUJHE LAGTA HAI KI HAM RACHANAKARO KI JIMMEDARI PARYAVARAN SANRAKSHAN JAISE MUDDE PAR BAHUT BADH GAYI HAI. JARUR HI ACHCHI RACHNAO KE DAWARA SAMAJ KO JAGRIT KIYA JA SAKTA HAI. AAO MILKAR PARYAS KARE. Dr,MUKESH GAUTAM, visit my web. www.mukeshgautam.com "
पलाश के दहकते फूल
ReplyDeleteबरसे थे अंगारे बन
आह्वान पर
बाबा बिरसा के
जब हुआ था
उलगुलान
क्रांति-बीज
बोया गया था
bahut hi gahan bijaropan
बहुत खूब ... सच कहा है आज पुवरर देश में फिर से क्रांति की ज़रूरत है .. ऐसी ही क्रांति ...
ReplyDeleteकविता पढने के बाद कविता में छुपे शोलों की गर्मी का अहसास चिंगारी बन कर फूट पड़ा !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आपकी काफी सारी कवितायेँ पढ़ी आज...चूँकि उधर से ही हूँ इसलिए अधिकतर प्रतीक एक जाने पहचाने संसार की रचना करते लगे. कविता के प्रारूप में अभी सुधार की जगह है, ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि आप चाहते हैं कि अच्छी कविता लिखें, वरना ब्लॉग लिखने में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती. आपने विषय बहुत अच्छा चुना है, ऐसी खोयी हुयी चीज़ें कहीं तो सुरक्षित रहेंगी.
ReplyDeleteब्लॉग के लिए शुभकामनाएं. गद्य लेखन भी करें, विषय के अनुकूल होगा.
bahut sundar....apna apna sa laga....
ReplyDeleteवो लम्हें जो याद न हों........
"पलाश के दहकते फूल बरसे थे अंगारे बन"
ReplyDeleteफिर से विस्थापित हैं
बिरसा की संताने
तैयारी है युद्ध की जंगलों के खिलाफ
धरती की कोख को गिरवी रखने के लिए
पलाश के फूल
कर रहे हैं एक और आह्वान
हो एक और उलगुलान
इस बार अपनों के बीच ही सही
अपनों के विरुद्ध ही सही
उलगुलान
बहुत सुंदर भावों के साथ क्रांति की आवाज।
आप धनबाद में हैं, मैं रांची में रहती हूं। कभी इधर आना हो तो बताइएगा मुलाकात जरूर होगी....