(दामोदर नदी को कभी बंगाल का शोक कहा जाता था. बंगला में इसे दमुदा भी कहते थे. दामू का तात्पर्य पवित्र और डा का अर्थ जल है.. लेकिन दामोदर में अब ना तो जल है ना यह पवित्र रही. अब बंगाल के बड़े हिस्से में दशको से बाढ़ नहीं आयी क्योंकि दामोदर में नहीं रहा जल. इसलिए बंगाल के बड़े हिस्से में धान की खेती प्रभावित हो रही है. अस्तित्वहीन होते दामोदर को समर्पित यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है )
दामोदर
नहीं रहे तुम
अब शोक-नदी
क्योंकि प्रवाह में तुम्हारे
नहीं है बल
ना ही धारा में
रहा जल
रहा जल
बराकर
कोनार
बोकारो
जमुनिया
हहारो
ये कुछ नदिया थीं
जो बनाती थी
तुम्हारा अस्तित्व
लुप्त हो रही हैं आज स्वयं
वे क्या देंगी तुम्हे
अस्तित्व
अस्तित्व
शोक मनाओ तुम
अब बाढ़ नहीं लाते तुम
बंगाल के शोक नदी भी नहीं रहे
लेकिन पूछो वर्दमान के पीले पड़े खेतो से
दशक बीत गए
बदली नहीं मिटटी
लाये जो नहीं तुम बाढ़
तुम्हारे तट पर
अब नहीं होती तुम्हारी प्रार्थना
नहीं मांगते लोग
तुमसे नाव पार करने को रास्ता
तुम्हरे ऊपर बने पुलों की नीव
दिखने लगी है दामोदर
अब तुम 'दामुदा' नहीं कहे जाते
नहीं जो रहे तुम दामू (पवित्र)
न ही रहा तुम में दा (जल)
बाँध कर तुम्हे
कहा गया था
होंगे प्रकाशमान
गाँव, पहाड़, खेत खलिहान
नारों में रह गए
सब के सब
हरियाली जहाँ पसारने का
दिया गया था सपना
आज लाल ही लाल है
माटी/पहाड़/झार
यह शोक मानाने का समय है
दामोदर/क्योंकि नहीं रहे तुम
नदी- अविभाजित बंगाल के शोक
हरियाली जहाँ पसारने का
ReplyDeleteदिया गया था सपना
आज लाल ही लाल है
आपकी चिंता वाजिव है ...शुक्रिया
बहुत अच्छा लगा अआपके ब्लॉग पर आकर ...शुभकामनायें
चिंतनीय ...
ReplyDeleteयही हाल पटना में गंगा का है... और दिल्ली में जमुना का!! जल जो न होता तो ये जग जाता जल, तो अब दिखेंगे वही जले हुए धान के खेत!! जब हम स्वयम अपनी पहचान मिटाने पर लगे हैं तो दोष किसको दें!!
ReplyDeleteआज अधिकतर नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं तथा सिमट रही हैं। दुखद एवं चिंता का विषय है ये।
ReplyDeleteआज यही हाल होता जा रहा है सभी जगह नदियों का…………बेहद चिंतनीय्।
ReplyDeleteआज यही हाल होता जा रहा है सभी जगह नदियों का…………बेहद चिंतनीय्
ReplyDeleteआज यही हाल होता जा रहा है सभी जगह नदियों का…………बेहद चिंतनीय्
ReplyDeleteArvind Kumar to me
ReplyDelete"bahut sunder palsh ji.....suder abhivyakti..
arvind"
rajiv kumar to me
ReplyDelete"अब नहीं होती तुम्हारी प्रार्थना
नहीं मांगते लोग
तुमसे नाव पार करने को रास्ता
तुम्हरे ऊपर बने पुलों की नीव
दिखने लगी है दामोदर"
दामोदर के अतीत से वर्तमान तक के वर्णन के सहारे आपने समाज के बदलते(या फिर कहिये की मरते )सरोकारों,मरती संवेदनाओं का जो चित्रण किया है वह मानव की संवेदनशून्यता की पराकाष्ठा है .आपने अनायास ही मुझे एलोइत के" Waste Land " में लाकर खड़ा कर दिया है.इसमें छिपी व्यथा को आज सिर्फ कवि मन ही समझ सकता है.क्योंकि अपने आस-पास को देखकर महसूसता है.सलिल जी से मैं पूर्ण सहमत हूँ.मैं भी दिल्ली में २० वषों से यमुना को तिल-तिल कर मरते देख रहा हूँ .इसे मानव जीवन की बिडम्बना ही कहेंगे कि वो कालीदास की तरह जिस डाल पर बैठा है उसी को काट रहा है नहीं जनता कि अंततः गिरकर घायल वही होगा . मुझे अब पूरा-पूरा विश्वास हो चला है कि इस संवेदनशून्य एवं अंधे समाज को एक रचनाकार ही झकझोर सकता है क्योंकि वही उसका भविष्य काफी पहले देख पाता है.लाजवाब प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
राजीव
प्रिय पलाश, आपका ब्लॉग खुल नहीं रहा है .कारण भी समझ नहीं आ रहा है.इसलिए यहाँ टिप्पणी दे रहा हूँ.
बेहद चिंतनीय विषय है ये।
ReplyDeleteek behatareen mudda hai
ReplyDeletebahut hi chinta janak
ReplyDeleteबेहद चिंता का विषय है...
ReplyDeleteपर्यावरण के प्रति जागरूख करती कविता ... स्वागत है
ReplyDeleteअच्छी कविता जो सामयिक प्रश्नों को भी सामने रखती है।
ReplyDeleteकमो बेश यही हाल है नदियों का हर जगह
ReplyDeleteनदियों को नाला बना दिया है हम लोगों ने ...
ReplyDeleteशोक का समय तो है ही !
सोच को झाक्जोरती आपकी रचना अभूत प्रभाव शाली है...यदि नदियों का येही हाल हम करते रहे तो भविष्य में क्या होगा भगवान ही जाने...मेरा एक शेर है:--
ReplyDeleteइक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसा तो नाली हो गयी.
नीरज
प्रिया पलाश आपकी कविता पढ़ कर दामोदर नदी का तट याद आ गया.. अत्यदिक खनन, खदानों को भरने के लिए रेत की जरुरत को पूरा करने के लिए नदी का दोहन, कई सारे छोटे बड़े बाँध के कारण यह नदी मर रही है.. बढ़िया कविता है आपकी.. शुभ कामना सहित ...
ReplyDeleteप्रकृति से आपका जुडाव प्रशंसनीय होने के साथ साथ आपके ह्रदय की स्निग्धता को भी दर्शाता है. शुभकामना
ReplyDeleteपर्यावरण चिंता को रेखांकित करती बेहतरीन कविता.
ReplyDeletenadiyon ki ye durdasha sarvatra ek si hai....damodar ab apani hi durdasha par shok mana raha hai....vicharniya....
ReplyDeleteलगभग कई नदियों का यही हाल है..छोटी नदियों का तो विकास एकदम रुक सा पड़ा है बस बरसात में ही नदी मालूम पड़ती है...रचना के माध्यम से एक सशक्त भाव प्रस्तुत किया है आपने... भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeletedamodar ki yaad dil ko choo gayeeeee
ReplyDeleteब्रह्मपुत्र और सोन के बाद शायद यही तीसरी महत्वपूर्ण नदी, नहीं नद है, पुल्लिंग जलधारा.
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