(धनबाद, झारखण्ड से कोई १५ किलोमीटर दूर ईस्ट बसुरिया में हर साल अप्रैल में शहीद मेला मनाया जाता है लेकिन कम ही लोगों को पता है इसके पीछे की मजदूरों के संघर्ष की कहानी. उन्ही अनाम मजदूर के संघर्ष के नाम समर्पित यह कविता. )
राज्य का बंटवारा
चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन
जन प्रतिनिधियों के चुने जाने /बदले जाने
जिलाधिकारियों की तैनाती के ब्योरे के बीच
नहीं है दर्ज ईस्ट बसुरिया का नाम
किसी सरकारी पंजिका में
न ही किसी इतिहास की किताब में जन प्रतिनिधियों के चुने जाने /बदले जाने
जिलाधिकारियों की तैनाती के ब्योरे के बीच
नहीं है दर्ज ईस्ट बसुरिया का नाम
किसी सरकारी पंजिका में
ताकि आने वाली पीढी
भूल जाये कि किया जा सकता है संघर्ष आज भी
कि हजारों मजदूर
आज भी कर सकते हैं
भूख हड़ताल मर जाने तक
छीने जाने पर हक़
और जरुरत पड़ने पर
बना सकते हैं अपने औजारों को
हथियार अपनी रक्षा में
नहीं बताई जानी है यह बात नयी पीढी को
इसलिए भी फाड़ दिया गया है
ईस्ट बसुरिया का पन्ना
मजदूर इतिहास की किताबों से
एक कोलियरी भर ही तो था
ईस्ट बसुरिया
जहाँ अपनी जान बचाने के लिए मजदूरों ने
जाने से मना किया था
पानी भरी खदान में भूल जाये कि किया जा सकता है संघर्ष आज भी
कि हजारों मजदूर
आज भी कर सकते हैं
भूख हड़ताल मर जाने तक
छीने जाने पर हक़
और जरुरत पड़ने पर
बना सकते हैं अपने औजारों को
हथियार अपनी रक्षा में
नहीं बताई जानी है यह बात नयी पीढी को
इसलिए भी फाड़ दिया गया है
ईस्ट बसुरिया का पन्ना
मजदूर इतिहास की किताबों से
एक कोलियरी भर ही तो था
ईस्ट बसुरिया
जहाँ अपनी जान बचाने के लिए मजदूरों ने
जाने से मना किया था
इतना हक़ तो बनता ही था
जबरन मौत के मुंह में धकेले जाने पर और जहाँ मजदूरों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले संघ
बिक जाएँ कोयले के भाव
अपनी लड़ाई लड़ना तो अधिकार था
ईस्ट बसुरिया का,
अधिकार के प्रति जागरूकता की आग
नयी पीढी तक ना पहुंचे
इसलिए भी बुझा दी गई है
ईस्ट बसुरिया के नाम की मशाल
कुछ डर भी गए तो क्या
कुछ भेदिया बन गए तो क्या
कुछ भूखे मरे तो क्या
कुछ मार दिए तो क्या
इतिहास के पन्नो में दर्ज नहीं भी हैं तो क्या बिक जाएँ कोयले के भाव
अपनी लड़ाई लड़ना तो अधिकार था
ईस्ट बसुरिया का,
अधिकार के प्रति जागरूकता की आग
नयी पीढी तक ना पहुंचे
इसलिए भी बुझा दी गई है
ईस्ट बसुरिया के नाम की मशाल
कुछ डर भी गए तो क्या
कुछ भेदिया बन गए तो क्या
कुछ भूखे मरे तो क्या
कुछ मार दिए तो क्या
जीत तो हुई ईस्ट बसुरिया की
दशकों बाद भी आज
मनाता है शहीद दिवस हर साल
ईस्ट बसुरिया
उन शहीदों के नाम
जो नहीं हैं दर्ज
किसी सरकारी पंजिका /इतिहास की किताबों में .
भूले बिसरे आंदोलनों और इस तरह की घटनाओं को सामने वाली आपकी ये कविताएं अपने आप में एक दस्तावेज बनती जा रही हैं। यह अच्छी बात है। तथ्यात्मक रूप से थोड़ी और मेहनत करके इनमें जानकारी रख पाएं तो बेहतर होगा।
ReplyDelete*
सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ कविताई करने के लिए बधाई और शुभकामनाएं।
कविता के माध्यम से समाजिक और परिस्थिति विशेष से आतंकित क्षेत्र का हाल बखूबी उकेरा है………दर्द उभर कर आया है।
ReplyDeleteइतिहास के अनछुये पन्नों की बिसरी हुई दास्तान लेकर आपने भूखण्ड के उन हिस्सों का भूगोल भी बताया है जिनसे एक आम भारतीय ही क्या, एक बिहारी/झारखण्डी भी अनभिज्ञ है...
ReplyDeleteएक अनूठा प्रयास!! सराहनीय!!!
kanchan varansi to me
ReplyDelete"रचना उत्तम है"
sangeeta swarup to me
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ...पर मेरे मेल पर कैसे आई ...
खैर एक अच्छी रचना पढने का मौका मिला
आभार
अनाम शहीदों को विशेष काल खंड और परिस्थितियों से गुजरते याद करना ...
ReplyDeleteकविता में नया प्रयोग है ये ..
सार्थक अभ्व्यक्ति !
पलाश जी आपकी कविता नए धरातल की कविता है... अच्छी लगी...
ReplyDeleteकुछ डर भी गए तो क्या
ReplyDeleteकुछ भेदिया बन गए तो क्या
कुछ भूखे मरे तो क्या
कुछ मार दिए तो क्या
इतिहास के पन्नो में दर्ज नहीं भी हैं तो क्या
जीत तो हुई ईस्ट बसुरिया की
bahut achhi rachna
अधिकार के प्रति जागरूकता की आग
ReplyDeleteनयी पीढी तक ना पहुंचे
इसलिए भी बुझा दी गई है
ईस्ट बसुरिया के नाम की मशाल
यह मशाल बुझ नहीं सकती....अंदर ही अंदर सुलगती रहेगी...और व्यर्थ नहीं जा सकता...कोई भी बलिदान...
आज इस कविता के माध्यम से कितने लोग ही इस से परिचित हो रहे हैं...एक सार्थक रचना
बड़ा अफ़सोस है मुझे कि इसी इलाके में रहते हुए भी इस तथ्य से आजतक अनभिज्ञ रही....
ReplyDeleteआपका कोटिशः आभार ..मशाल की ज्योत प्रदीप्त रखने और प्रकाश के प्रसार के लिए..
वैसे यदि इस घटना के विषय में सविस्तार जानने का मौका मिलता तो बड़ा अच्छा लगता...क्या आप इतना उपकार और करेंगे...
लेखनी का उपयोग इस प्रकार के सत्प्रयासों में हो,तो और क्या चाहिए.....
"दशकों बाद भी आज
ReplyDeleteमनाता है शहीद दिवस हर साल
ईस्ट बसुरिया
उन शहीदों के नाम
जो नहीं हैं दर्ज
किसी सरकारी पंजिका/
इतिहास की किताबों में."
प्रिय पलाश आपकी नई रचना "ईस्ट बसुरिया"पढ़कर ऐसा लगा कि अंग्रेजों से धरोहर में प्राप्त सामंतवादी सोच,भ्रष्टाचार के बीज आज भी कीकर और बबूल के कांटे बनकर हमारी जीवन प्रणाली में उगते है चुभने के लिए.इतिहास सिर्फ कागज के पन्नों पर उकेरी गई कुछ इबारत भर नहीं है,ये तो जन-जन में व्याप्त वो लहर है जो आप जैसे रचनाकारों की कलम में समा कर एक किम्वदंती बनकर जी रही है.इतिहास तो राम के त्रेता का भी नहीं है.
सत्ता की भूख ने लोगों को जनता के लिए सोचने से विमुख कर दिया .लेकिन आज वे भी विद्रोह की आंच को महसूस कर रहे हैं.विषमता के खेत में उपजाई गई फसल में आग तो होगी ही.शोषण ही विद्रोह की जननी है.इसे कोई पन्ने फाड़कर कैसे मिटा पायेगा. बहुत ही सराहनीय रचना जो आपके सामाजिक सरोकारों का आइना है.आपकी संवेदनशीलता को नमन.
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ReplyDeleteदशकों बाद भी आज
ReplyDeleteमनाता है शहीद दिवस हर साल
ईस्ट बसुरिया
उन शहीदों के नाम
जो नहीं हैं दर्ज
किसी सरकारी पंजिका /इतिहास की किताबों में .
palash ji,
bahut achha laga is vishay par padhkar. itihaas ke panno se nikalkar kuchh samvednaayen hum tak pahunchi, dhanyawaad. uttam lekhan keliye bahut badhai aur shubhkaamnaayen.