(धनबाद, झारखण्ड मुख्यालय से कोई २१ किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित कतरासगढ़ आज भी है लेकिन बदले हुए स्वरुप में. माफिया के चंगुल में फंसे इस कसबे से मूल आदिवासियों का विस्थापन कई दशको पहले हो गया. पता नहीं यह बात कह पाया या नहीं. लेकिन उस विस्थापन को समर्पित है यह कविता. )
कतरासगढ़
अब बस नाम का है
और कतरासगढ़ का किला
तो रहा ही नहीं
किला अपने इतिहास के साथ
दफ़न हो चुका है खादानो में
किले के प्राचीर के रूप में खड़े
कतरासगढ़ के पठार के साथ
सीढ़ीनुमा खेतों के बीच
मेढ़ो से चलते हुए
छू लेते थे क्षितिज के सूरज
पहाड़ी के ऊपर
और कतरासगढ़ के किले की
ख़ामोशी में पलती चुपचाप जिंदगियां
ढोलको की थाप पर
नाचते पावों का
कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं था
भूख से
क्योंकि उत्सव और आनंद में
संसाधनों का कांटा उगा नहीं
पुटुष और
पलाश के फूल के श्रृंगार से
झूमता कतरासगढ़ का किला
इसके प्राचीर के भीतर बाहर की जिंदगियां
ख़त्म नहीं हुई
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा
हाँ !
जब खोखली कर दी गई
कतरासगढ़ के किले की नींव
भीतर ही भीतर
ढह गया यह अपने परिजनों समेत
अपने ही खादान में .
अलग अलग नामों से
हैं कई कतरासगढ़ के किले
आज देश में
एक जैसे भविष्य के साथ
आदरणीय कुमार पलाश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द
ACHI JAANKARI DI AAPNE HUME IS KILE KE BARE ME PATA HI NAHI THA........
ReplyDeleteआपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
ReplyDeleteजैसे मैंने पहले भी कहा था । इस तरह की इतिहास विषयक कविताओं में जानकारी तथा तथ्य और होने चाहिए। इस मायने में यह कविता आपकी पहले की कविताओं से कमजोर है।
ReplyDelete• यह कविता अपने समय को पड़ताल करती है।
ReplyDeleteभावपूर्ण ,सुगठित,सुन्दर कविता
ReplyDeletegood views
ReplyDeleteजानकारी से भरपूर इस बेहतरीन कविता के लिए आभार।
ReplyDeletebahut khub palash jee, apni mitti ko kavita me sametna sabke bass ki baat nahi...badhai
ReplyDeletekabhi hamare blog pe aayen...:)
हाय मुरझाना क्यों इतना असर रखता है ...कविता के माध्यम से पूरा पूरा चित्र खींच दिया है ..
ReplyDeleteDesh ki haalaat ko is kile ki maadhyam se likh diya hai aapne... bahut lajawaab ...
ReplyDeletenamskar !
ReplyDeletenav varsh ki hardik badhai , suner abhivyakti ,
saadar
प्रिय पलाश,नव-वर्ष मंगलमय,
ReplyDeleteआपकी इस रचना ने मुझे आज से 30 वर्ष पूर्व के वैशाली की याद दिला दी जिसका जीर्णोद्धार जापान सरकार की मदद से किया जा रहा है,क्योंकि महात्मा बुद्ध को उन्होंने अपना इष्ट माना है.पर ऐसा सौभाग्य कतरासगढ़ के किले का नहीं रहा.सही कहा आपने .आज उसी इतिहास को बचाने की कोशिश होती है जो धनोपार्जन का केंद्र बने या उसे बाहर की कोई सत्ता गोद ले ले .इसे बिडम्बना नहीं तो और क्या कहेंगे.ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में दोहन और विस्थापन का प्रतीक बने "कतरासगढ़ के किले" की जीवन्तता अद्भुत है.और क्या कहूँ?
कविता के माध्यम से कत्सरागढ़ के किले के बारे में जाना ...
ReplyDeleteअलग अलग नामों से
हैं कई कतरासगढ़ के किले
आज देश में
एक जैसे भविष्य के साथ ...
वाजिब चिंता है ...और हम इन किलों को सिर्फ ढेर होते हुए देख रहे हैं ...
आपकी संवेदनशीलता को नमन !
पलाश जी
ReplyDelete'कतरासगढ़ का किला' पर कविता के माध्यम से आप एक बड़े विषय को छु रहे हैं.. राजेश उत्साही जी से सहमत हूँ कि कविता में एतिहासिक पक्ष पर उतनी रौशनी नहीं डाली गई जितनी आवश्यक थी.. फिर भी एक अच्छी कविता के लिए आपको बधाई..
palash ji,
ReplyDeletekavita ke maadhyam se katraasgarh kee peeda bahut achhi tarah abhivyakt hui hai, badlaav kabhi kabhi mann ko hin nahin itihaas ko bhi badal deti hai jo aahat kar dei hai humein. bhaavpurn rachna, badhai.
Hello Mr. Palash,
ReplyDeleteApkke comments dekhe mene Rajiv Je or Rampati Je ke Blog per. Aap Comments acha karte hai. Waise aap delhi kab aa rahe hai mein apse milna chaongi.
कतरासगढ़ के यथार्थ को दर्शाती कविता की अभिव्यक्ति मन के तारों को झंकृत कर गयी।धन्यवाद।
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