Thursday, February 17, 2011

रांची वार सेमेट्री*


(रांची वार सेमेट्री में १९४२ और उसके बाद के युद्ध में शहीदों को दफनाया गया है. यहाँ की शांति बहुत चुभती सी लगी मुझे. इसी चुभन को सलाम करती अनाम शहीदों के लिए कविता) 

रांची वार सेमेट्री 
पर्यट स्थल
नहीं है यह
न ही प्रेमियों के लिए 
सुरक्षित स्थान

नीरव शांति है
यहाँ
काले हरे परिसर में 
दफन हैं 
तमाम अनाम शहीद 

जब डूब रहा था
उपनिवेशवाद का सूरज 
देश बढ रहा था 
एक नए उपनिवेशवाद की ओर

द्वितीय विश्वयुद्ध में  
हजारों हजार शहीद हुए 
युद्ध  
जो देश के विरुद्ध भी था और
पक्ष में भी

शहीद
जो अशांति में थे
आज लेटे हैं असीम शांति की गोद में
समाधिस्थ
अकेले, निर्लिप्त 
रांची के वार सिमिट्री में
कुछ ७०५ शहीदों के नाम 
दर्ज हैं सेमेट्री के रजिस्टर में 
और जो नहीं हैं 
कहाँ दर्ज हो सका है उनका नाम
कहीं भी 

समाधि के सन्नाटे से
आती हैं कुछ आवाजें 
जो चाहती हैं
शांति अपने घर में 


क्योंकि
युद्ध के बाद भी 
युद्ध
जारी रहता है 
शहीदों के घरों में
पीढ़ियों के बाद भी

*सेमेट्री : कब्रिस्तान खासतौर पर ईसाईयों का

Thursday, February 10, 2011

चासनाला

(धनबाद से बीस किलोमीटर दूर एक कोयला क्षेत्र है चासनाला. २७  दिसंबर १९७५ की रात को एक विस्फोट होता है खान के ३०० फुट नीचे और ७० लाख गैलन प्रति मिनट के हिसाब से पानी घुस जाता है खादान में और करीब ३००० मजदूर कभी ऊपर नहीं आ पाते. सरकारी आकड़ों में ये केवल ३७२ हैं. यह कोई दिल्ली तो नहीं है कि मनाई जाएगी इस हादसे की बरसी या फिर  से खुलेगी इसकी फ़ाइल भोपाल गैस कांड की तरह. गुमनाम चासनाला शहीदों को समर्पित यह कविता )

हिन्दुओंनेट.कॉम से साभार 


आम सी ही रात थी
चाँद आसमान में खिला था
तारे झिलमिल कर रहे थे
माँ लोरिया सुना कर
सुला रही थी बच्चों को
बूढ़े पिता खांस रहे थे बाहर के कमरे में
और जोर जोर से भौंक रहा था
धौरे का कुत्ता
चासनाला में 
२७ दिसम्बर १९७५ की
सर्द रात को

बत्ती घर से
उठी थी लगभग ३००० बत्तियां
और झिलमिल हो उठा था
चासनाला का भूगर्भ
लगभग चार सौ फुट नीचे
टिमटिमाती बत्तियों से

हाथ में थामे
जिलेटिन का बैटन
स्टील के लम्बे छड़ों से
मापी जा रही थी
खदान की और गहराई
कोयले की परतें
खोखलेपन की आवाज़ को
और निरक्षरों के अनुभव की
अनसुनी कर
किया गया था एक विस्फोट
जो साबित हुआ अंतिम ही

एक विस्फोट और
सत्तर लाख गैलन प्रति मिनट की दर से
दामोदर के सैलाब ने
भर दिया चासनाला का गर्भ
और समाहित हो गयीं
वे तीन हज़ार बत्तियां
काले स्याह चेहरों के बीच 
झिलमिलाती पुतलियाँ और
उनमे भरे सपने

महीनो लग गए
चासनाला खान से
निकालने  में पानी
वर्षों  तक  कंकाल  मिलते  रहे खान से
चैता और विरहा के आलाप भी 
गूंजते से सुनाई  देते  थे चासनाला खान में

वह जमाना नहीं था
लाइव रिपोर्टिंग का
फिर भी बिके थे
अखबार पत्रकार
अधूरी रह गईं
माँ की लोरियां
खांसते बूढ़े
गुम से हो गए
अचानक से
बड़े हो गए बच्चे
और पलाश, पुटुष, अमलताश
चुप से हो गए

मुर्गों की लड़ाई पर
पैसे फेंकते निर्द्वंद चेहरे
गायब हो गए
काली माँ का मंदिर
जहाँ रोज़ झुकाते थे
हजारों मजदूर अपना माथा
धर्म जाति से परे
खाली रहने लगा

फिर बनी
जांच समितियां
हुए धरने प्रदर्शन
हटा दिए गए रातो रात
हाजिरी रजिस्टरों के पन्ने
और खाली करा दिए गए
धौरे, मोहल्ले
और फिर
हो गया सामान्य सब कुछ
चासनाला में

बस हँस नहीं पाया 
हंसोड़ बत्तीबाबू फिर कभी
२७ दिसंबर १९७५ की रात के बाद 

Thursday, February 3, 2011

कैनेरी हिल्स

(झारखण्ड का हजारीबाग न केवल झारखण्ड बल्कि दक्षिण पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों के लिए अध्ययन का केंद्र है. यहाँ एक लवर्स प्वाइंट  है केनैरी हिल्स . यह हिल टाप यहाँ पढने आने वाले युवाओं के लिए पिकनिक स्पाट तो है लेकिन यहाँ तक पहुँचने वाले रास्ते के दोनों ओर प्राइवेट लाज़ हैं जहाँ अति साधारण दूर दराज गाँव से आये छात्र रहते हैं.. कोर्रा  चौक के आस पास ढेरों लाज़ हैं जहाँ से निकल हजारों छात्रों ने सफलता को चूमा है. कैनेरी हिल्स को समर्पित एक कविता . )

एक पगडण्डी
जो जाती है
कैनेरी हिल्स की तरफ
सैंट कोलंबस कालेज की ओर से
बीच में आते हैं
कई निजी छात्रावास
जिनके बिना खिड़की वाले कमरों से
आती है रासायनिक सूत्रों को रटने की आवाज़
सुबह होने से पहले और रात होने के बाद तक
जहाँ इन कमरों में सपने
हर क्षण पैदा होते हैं,
पलते हैं, बढ़ते हैं
छू लेते हैं आसमान
 कहीं ऊँचे उठ जाते हैं
कैनेरी हिल्स से

कैनेरी हिल्स को
यों  तो कहा जाता है
लवर्स प्वाइंट
जहाँ से एक ओर दिखता है
विश्वविद्यालय तो दूसरी ओर
कालेज़ का गुम्बद
ऐसे में पिघल जाता है
युवा प्रेम का भाव
बर्फ की तरह
सपने दृढ हो
उठ खड़े हो जाते हैं
हिमालय की तरह
बौना पड़ जाता है
कैनेरी हिल्स

कैनेरी हिल्स से
वापिस होते हुए
जब सूरज छिप रहा होता है
जागता है "कोर्रा चौक"
यहाँ चाय के स्टाल पर होती है
राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मसलो पर
इतनी जोरदार बहस 

कि संसद बौना हो जाए
होती है देश भर के
अखबारों के  सम्पादकीय पर
सुदीर्घ चर्चा हिंदी, अंग्रेजी,
संथाली, खोरठा में

कैनेरी हिल्स बुलाता है
लुभाता है लेकिन
इसकी ओर जाने वाले रास्ते
भटकने नहीं देते