१.
मेड पर
खड़े हो जब किसान
करते हैं प्रार्थना
जेठ की भरी दुपहरी में
तब जाकर होता है
आषाढ़ गीला
२.
ओसारे पर
जेठ की दुपहरी के
एकांत में
जब बात करती है
परदेश बसे पिया से
मन ही मन
धन-रोपनी की करती है
कल्पना
तब जा के आता है
आषाढ़ गीला
३
जब चिलचिलाती धूप में
पेड़ की गुमस छाव में
नोच रहा होता है
वह अपनी घमौरिओं को
ताड़ के पंखे के डंडे से
जलन की टीस से जो
निकलती है एक एक आह
तब जा कर होता है
आषाढ़ गीला
४.
जब पनघट पर
बाल्टी के साथ लगी डोरी
पड़ जाती है छोटी
बढ़ने लगता है
प्यास का आकार
तब जाकर
पिघलता है आकाश
होता है
आषाढ़ गीला
वाह - मार्मिक एवं सशक्त रचना
ReplyDeleteइससे बेहतरीन चित्रण आषाढ का और क्या होगा।
ReplyDeleteप्रिय पलाश जिन विम्बो को आषाढ़ लेन के पीछे उठाया है वह कहाँ है फोकस में आज कल... मेढ़ पर किसान की प्रार्थना... धान-रोपनी के लिए परदेश से मजूर का गाँव लौटना.... गुमस गर्मी...और बाल्टी की डोरी का छोटा पड़ना.. और फिर जाके आषाढ़ के बादलों का आना.... ग्रामीण भारत का चित्र प्रस्तुत कर दिया है आपने....
ReplyDeleteहर क्षणिका नए बिम्ब को लिए हुए ... बहुत गहन विचार ..और मिट्टी से जुडी बातें .. सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut hi sundar !
ReplyDeleteabhaar!
नमस्कार !
ReplyDeleteसादर हर क्षणिका नए बिम्ब को लिए हुए , गहन विचार ,और मिट्टी से जुडी बातें,सुन्दर
बधाई ,
सादर
waah bahut hi khoobsurat rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen
"मेड पर
ReplyDeleteखड़े हो जब किसान
करते हैं प्रार्थना
जेठ की भरी दुपहरी में
तब जाकर होता है
आषाढ़ गीला"
प्रिय पलाश,स्नेह.बहुत दिनों बाद ग्रामीण पृष्ठभूमि के कैनवास पर इतनी लाजवाब रचना को उभरते देखकर चित्त प्रसन्न हो गया.चारो ही बिम्ब कविता को साकार करते है और गति देकर जीवंत बनाते हैं. यही कारण है कि आज भी ग्रामीणों और किसानों का प्रकृति और ईश्वर में दृढ विश्वास बना हुआ है.
कुमार मुकुल to me
ReplyDelete" प्रिय भाई
कविता पढी, अच्छी लगी, आज कल लोग इन विषयों को छोड चुके हैं ,लिखते रहिए"
वह अपनी घमौरिओं को
ReplyDeleteताड़ के पंखे के डंडे से
जलन की टीस से जो
निकलती है एक एक आह
तब जा कर होता है
आषाढ़ गीला
कमाल है पलाश भाई। आपने जो बिम्ब प्रयोग मानव के संघर्ष और जद्दोजहद को चित्रित करने के लिए किया है, वह अद्वितीय है। और यह आप ही कर सकते हैं।
माटी और मौसम की मनहर सुगंध लिए ....रसवंती रचना
ReplyDeleteनए बिम्ब और गाँव की छुवन......... चित्र काव्य का सृजन
bahut hi achhi rachna
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! ख़ूबसूरत रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बढ़ने लगता है
ReplyDeleteप्यास का आकार
तब जाकर
पिघलता है आकाश
होता है
आषाढ़ गीला
बहुत ही अच्छा लिखा है ..
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteवाह ,पलाश जी .
AAPNE SHAHARWASIYO KO SUCH-MUCH BATA DIYA HAI AASHADH GEELA. @ UDAY TAMHANEY.
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